यह कार्यक्रम भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार और मेटा के सहयोग से आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित किया गया और टीमवर्क आर्ट्स द्वारा निर्मित किया गया।
Abhay Pratap Singh | October 25, 2024 | 06:56 PM IST
नई दिल्ली: मेटा के चीफ एआई साइंटिस्ट डॉ. यान लेकन ने आईआईटी दिल्ली में एक पैनल चर्चा में भाग लिया, जिसमें उन्होंने एआई के भविष्य और मानव क्षमताओं के साथ इसके संबंध के बारे में अपना दृष्टिकोण पेश किया। ‘फ्रॉम न्यूरल मिमिक्स टू स्मार्ट असिस्टेंट - ए जर्नी इनटू एआई नेक्स्ट फ्रंटियर्स’ शीर्षक वाले पैनल चर्चा के दौरान डॉ. यान ने एआई आर्किटेक्चर पर पुनर्विचार की आवश्यकता, ओपन-सोर्स के फायदे और एआई परिदृश्य में भारत की अद्वितीय क्षमता पर जोर दिया।
‘बी इंस्पायर्ड एट आईआईटी दिल्ली विद यान लेकन’ सत्र का उद्घाटन भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की सलाहकार एवं साइंटिस्ट जी डॉ. प्रीति बंजल ने किया, जिन्होंने जिम्मेदार एआई के प्रति भारत सरकार की पहल पर जोर दिया।
डॉ. यान का स्वागत करते हुए आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रो रंगन बनर्जी ने मानव-एआई इंटरफेस रिसर्च एंड सेंटर फॉर हेल्थकेयर में संस्थान की पहल के बारे में बात की, जो भारत सरकार, एम्स और आईआईटी दिल्ली के बीच एक सहयोग है। जिसका उद्देश्य एआई के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा को आगे बढ़ाना है।
यह कार्यक्रम भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार और मेटा के सहयोग से आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित किया गया और टीमवर्क आर्ट्स द्वारा निर्मित किया गया। इस सत्र का सह-संचालन आईआईटी की पूर्व छात्रा व सीईओ WYSA जो अग्रवाल तथा GOQii के सीईओ विशाल गोंडल ने किया।
एआई विकास के वर्तमान दृष्टिकोण को चुनौती देते हुए डॉ. यान ने लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) से परे नवीन आर्किटेक्चर के लिए आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान एआई प्रतिमान वास्तविक मानव जैसी बुद्धिमत्ता हासिल करने के लिए अपर्याप्त हैं।
उन्होंने आगे कहा, “हम वर्तमान प्रतिमान का उपयोग करके और इसे केवल बड़ा बनाकर हम उस स्तर तक नहीं पहुंचने वाले हैं। हमें अनिवार्य रूप से उद्देश्य-संचालित वास्तुकला जैसे नए आर्किटेक्चर की आवश्यकता है।” मॉडलों को बढ़ाने के बजाय उन्होंने ऐसी प्रणालियों के लिए तर्क दिया जो भौतिक दुनिया को समझती हैं और नई स्थितियों के माध्यम से तर्क करती हैं।
डॉ. यान ने स्थानिक एआई और जेईपीए जैसी परियोजनाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने एआई के विकास को सिग्मॉइड वक्र के रूप में वर्णित किया - तीव्र विस्तार के बाद संतृप्ति। सिंगुलैरिटी, जहां मशीनें मानव बुद्धि से आगे निकल जाएंगी, तत्काल क्षितिज पर नहीं है। इसके बजाय, भविष्य प्रतिमान विकसित करने और पुराने तरीकों को नए मॉडलों से बदलने में निहित है, जो एक “विश्व मॉडल” का निर्माण कर सकते हैं, जो जानवरों की तरह समझने, भविष्यवाणी करने और योजना बनाने में सक्षम हो।
एआई सुरक्षा के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने मनुष्यों पर इंटेलिजेंट सिस्टम के हावी होने की आशंकाओं को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि एआई का उद्देश्य सशक्त बनाना है। “मेरी राय में एआई का भविष्य एक ऐसा भविष्य है जिसमें हर कोई स्मार्ट चश्में की तरह डिजिटल सहायक के साथ घूम रहा होगा।”
एआई युग में भारत की भूमिका पर डॉ. यान ने एक प्रमुख ताकत के रूप में संस्कृतियों, भाषाओं और मूल्य प्रणालियों की विविधता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “बड़े मॉडलों का प्रशिक्षण वितरित किया जाना है। जनसंख्या के आकार, संस्कृतियों की विविधता और मूल्य प्रणालियों के कारण भारत को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।”
उन्होंने LLaMA 3 का उपयोग करके भविष्य के मॉडल के बारे में भी बात की, जो भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं का समर्थन कर सकता है और गैर-लिखित भाषाओं का अनुवाद कर सकता है - यह सब ओपन-सोर्स तकनीक के माध्यम से संभव हुआ है। डॉ. यान ने इस बात पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकाला कि एआई का भविष्य सहयोग और नवाचार पर निर्भर करता है।