AMU Minority Status Case: एएमयू का माइनॉरिटी स्टेटस बरकरार; सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को खारिज किया

1967 में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में कहा था कि एएमयू केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के कारण अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता।

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया। (इमेज-विकिमीडिया कॉमन्स)उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया। (इमेज-विकिमीडिया कॉमन्स)

Santosh Kumar | November 8, 2024 | 01:09 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार (8 नवंबर) को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर उठ रहे सवाल को नई पीठ को सौंप दिया और 1967 के अपने फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसका गठन एक केंद्रीय कानून द्वारा किया गया था।

अपने अंतिम कार्य दिवस पर बहुमत का फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर विचार करते समय अपनाए जाने वाले परीक्षण को निर्धारित किया। मुख्य न्यायाधीश ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया।

Background wave

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले के न्यायिक रिकॉर्ड को 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता तय करने के लिए एक नई पीठ गठित करने के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाना चाहिए।

AMU Supreme Court: जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

जनवरी 2006 में, उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को खारिज कर दिया था जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। शुरुआत में, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि 4 अलग-अलग राय थीं, जिनमें 3 असहमति वाले फैसले शामिल थे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग असहमति वाले फैसले लिखे हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत अपनी असहमति पढ़ रहे हैं और फैसला सुनाने की प्रक्रिया चल रही है।

1967 में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में कहा था कि एएमयू केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के कारण अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। हालांकि, 1981 में संसद ने एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया, जिससे इस संस्थान को फिर से अल्पसंख्यक दर्जा मिल गया।

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